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कविता

न्युरेंबर्ग में हिटलर

जसबीर चावला


अगर जिंदा ही पकड़ा जाता हिटलर
पेश होता
न्युरेंबर्ग ट्रायल में
क्या चुपचाप
अपने विरुद्ध लगे आरोप सुन लेता
और
माँगता माफी
अपने गुनाहों की
नहीं है नफरत अब उसे
विश्व के यहूदीयों से
कि
गलत था वह
मुँह में तृण रख लेता
बदले हैं विचार
यहूदी उसके भाई हैं

या वह तनकर बैठता
सुनता कम / मुक्के पीटता / चीखता
अवैध है यह न्युरेंबर्ग जाँच / ट्रायल
नहीं मानता मैं तुम्हारी संप्रभुता / अधिकारिता
दफा हो
मत बतलाओ राजधर्म
लाद सकता है कोई भी विजेता देश
मनचाही संधि
यहूदी हैं गलीज / इसी काबिल
बनाये यातना चेंबर / निर्वासन के लिये
सही हैं मेरे कदम
गेस्टापो / गोयेबल्स
गलत हैं मुकदमे
अधिकारियों पर
क्यों बदले वह
खुद / खुद के विचार / चिंतन
उसका जीवन मूल्य / आस्था
जीयेगा / मरेगा इन्हीं के संग
क्यों हो कोई घोषणा
कि
बदल चुका है वह
राजनीति / वक्त के दबाव से

 


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